शनिवार, 6 अगस्त 2011

vyanga

व्यंग
केट वाक से स्लट वाक तक ---- यशवंत कोठारी

आखिर दिल्ली में स्लट वाक संपन्न होगई . कनाडा से चल कर भोपाल होती हुई स्लट वाक दिल्ली तक आगई - समाचार चेनलो के मजे हो गए. खूब टी. र प बढाई . खूब फोटो खिचे. खूब नयन सुख लूटा.बेशर्मी के खिलाफ एक बेशरम प्रदर्शन खुद आनंद आया -लिया गया. महिलाओ के साथ साथ कुछ पुरुषो ने इस आन्दोलन में भाग लेकर aassvपना जोहर दिखलाया .कुछ मनचले वेसे ही साथ हो लिए,वेसे भी दिल्ली में भीड़ की क्या कमी, फिर मामला महिलाओ का होतो कह्नाही क्या?
लेकिन यह तो पुछा ही जा सकता ह़े की क्या बेशर्मी का मुकाबला बेशर्मी से ही किया जाना चाहिए. आखिर जब वर्सो पहले वोमेन -लिब तब भी एसा ही होहल्ला मचा था मगर कुछ नहीं हुआ दुनिया इसे चलती रही. वह आन्दोलन अपनी मोत मर गया. जिन लोगो ने बेशर्मी की केट वाक देखि वे इस पर शर्मा गए होगे. क्या जानवर के काटने पर उसे वापस काटना ही एक मात्र उपाय ह़े, विचार करे. प्रदर्शन का आधिकार मगर क्या हमें अपनी संस्कृति ,सभ्यता को भूल जाना चाहिए क्या स्वतंत्रता केवल निजी अधिकार ह़े क्या स्वतंत्रता एक सामाजिक जिम्मेदारी नहीं ह़े?एक पुराना किस्सा यद् आरहा ह़े एक औरत ने कही की अब देश आज़ाद हो गया वो सड़क के बीच में चलेगी ,किसी समजदार ने उसे समजाया की जिस तरह तुम्हे सड़क के बीच में चलने का आज़ादी ह़े ठीक उसी प्रकार ड्राइवर को फूटपाथ पर गाड़ी चढाने की आज़ादी ह़े. महिला को अपनी गलती समज में आगई .गुरू कहलाने वाले इस भारत में इस प्रकार के प्रदर्शनों की आवश्यकता कहां से आ पड़ी.परन्तु लोगों के पास अपने आप को माडर्न दिखाने का यह छिछला व बेकार तरीक़ा,पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने के अलावा कुछनहीं है.अगर प्रदर्शन करना है तो लोगों के मानसिक नंगेपन को दूर करने लिए न्यायोचित तरीक़े से करो ताकि समाज में फैले इस नासूर को मिटाया जासके व इसकी गरीमा को बचाया जा सके जहां नारी को पूजने जैसी बातें की जाती है उस समाज में नारी के सम्मान को नीलाम होने से बचाया जा सके. आखिर केट वाक से स्लेट वाक का यह सफ़र हमें कहा ले जायगा. हमें अपने अंदर की गंदगी को बाहर निकलने के प्रयास करने चाहिए/


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: ykkothari3@yahoo.com t;iqj&302002 Qksu%&2670596
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केट वाक से स्लट वाक तक ---- यशवंत कोठारी

आखिर दिल्ली में स्लट वाक संपन्न होगई . कनाडा से चल कर भोपाल होती हुई स्लट वाक दिल्ली तक आगई - समाचार चेनलो के मजे हो गए. खूब टी. र प बढाई . खूब फोटो खिचे. खूब नयन सुख लूटा.बेशर्मी के खिलाफ एक बेशरम प्रदर्शन खुद आनंद आया -लिया गया. महिलाओ के साथ साथ कुछ पुरुषो ने इस आन्दोलन में भाग लेकर aassvपना जोहर दिखलाया .कुछ मनचले वेसे ही साथ हो लिए,वेसे भी दिल्ली में भीड़ की क्या कमी, फिर मामला महिलाओ का होतो कह्नाही क्या?
लेकिन यह तो पुछा ही जा सकता ह़े की क्या बेशर्मी का मुकाबला बेशर्मी से ही किया जाना चाहिए. आखिर जब वर्सो पहले वोमेन -लिब तब भी एसा ही होहल्ला मचा था मगर कुछ नहीं हुआ दुनिया इसे चलती रही. वह आन्दोलन अपनी मोत मर गया. जिन लोगो ने बेशर्मी की केट वाक देखि वे इस पर शर्मा गए होगे. क्या जानवर के काटने पर उसे वापस काटना ही एक मात्र उपाय ह़े, विचार करे. प्रदर्शन का आधिकार मगर क्या हमें अपनी संस्कृति ,सभ्यता को भूल जाना चाहिए क्या स्वतंत्रता केवल निजी अधिकार ह़े क्या स्वतंत्रता एक सामाजिक जिम्मेदारी नहीं ह़े?एक पुराना किस्सा यद् आरहा ह़े एक औरत ने कही की अब देश आज़ाद हो गया वो सड़क के बीच में चलेगी ,किसी समजदार ने उसे समजाया की जिस तरह तुम्हे सड़क के बीच में चलने का आज़ादी ह़े ठीक उसी प्रकार ड्राइवर को फूटपाथ पर गाड़ी चढाने की आज़ादी ह़े. महिला को अपनी गलती समज में आगई .गुरू कहलाने वाले इस भारत में इस प्रकार के प्रदर्शनों की आवश्यकता कहां से आ पड़ी.परन्तु लोगों के पास अपने आप को माडर्न दिखाने का यह छिछला व बेकार तरीक़ा,पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने के अलावा कुछनहीं है.अगर प्रदर्शन करना है तो लोगों के मानसिक नंगेपन को दूर करने लिए न्यायोचित तरीक़े से करो ताकि समाज में फैले इस नासूर को मिटाया जासके व इसकी गरीमा को बचाया जा सके जहां नारी को पूजने जैसी बातें की जाती है उस समाज में नारी के सम्मान को नीलाम होने से बचाया जा सके. आखिर केट वाक से स्लेट वाक का यह सफ़र हमें कहा ले जायगा. हमें अपने अंदर की गंदगी को बाहर निकलने के प्रयास करने चाहिए/


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